by Ashok Kumar | May 4, 2025 | Story

दोस्तों एक गांव में एक आदमी रहता था वह बहुत अच्छा था हमेशा दूसरों की मदद करता था और उसका दिल बहुत अच्छा था वह किसी का निरादर नहीं करता था अपने घर पर आए हुए मेहमानों को बहुत आदर पूर्वक भोजन करवाकर बेजता था और वह प्रत्येक दिन ओम नमः शिवाय का जाप करता था वह भगवान शिव को दिल से बहुत मानता था और उनकी पूजा अर्चना किया करता था , उसके काम अच्छे थे यह देखकर भगवान भी उस पर बहुत प्रसन्न थे और भगवान् उसका हमेशा साथ देते थे, उसके साथ उसके बच्चे उसकी पत्नी भी उसके साथ भगवान की पूजा किया करते थे 1 दिन की बात है वह आदमी बहुत बीमार हो जाता है और उसके घर वाले उसको हॉस्पिटल में लेकर जाते हैं, जब वह उसे हॉस्पिटल में लेकर जाते हैं, तो डॉक्टर उनको बताता है कि आपको अभी दो लाख रुपए जमा करवाने पड़ेंगे ,अभी के अभी पैसे जमा करवा दो उसके बाद इनके दिल का ऑपरेशन करना पड़ेगा ,लेकिन दोस्तों उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वह अभी के अभी जमा करवा दें तो वह बहुत घबरा जाते हैं वह सोचते हैं कि ऐसी स्थिति में सिर्फ एक भगवान ही हमारी मदद कर सकते हैं और उसकी पत्नी मन ही मन में ओम नमः शिवाय का जाप करने लगती हैं ऐसा देखकर उसके बेटे को गुस्सा भी आता है कि हमारे साथ इतना बुरा हुआ है मेरा पिताजी मरने की हालत में है और मेरी मां फिर भी भगवान को ही पुकार रही है लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई और रास्ता भी नहीं होता वह बहुत परेशान होकर हॉस्पिटल के बाहर खड़े हो जाते हैं तो कुछ देर बाद एक डॉक्टर उनको बुलाने के लिए आता है कि आपको अंदर बुला रहे हैं जब उसका बेटा अंदर जाता है तो वह बड़े डॉक्टर से मिलता है और वह डॉक्टर बताता है कि तुम्हारे पिताजी का ऑपरेशन हो गया है और वह अब बिल्कुल ठीक है उनका ऑपरेशन बिल्कुल ठीक-ठाक हुआ है तुम्हें अब घबराने की जरूरत नहीं है कुछ समय बाद तुम्हारे पिताजी अच्छी तरह स्वस्थ हो जाएंगे तो वह मन ही मन में सोचता है कि जब मैं और मम्मी बाहर थे तो पैसे किसने दिए होंगे और कौन पैसे लेकर आया होगा ,वह डॉक्टर से पूछते है कि लेकिन हमने तो पैसे जमा नहीं करवाए थे तो आपने ऑपरेशन कैसे किया तो डॉक्टर ने बताया कि मेरे पास एक आदमी आया था और उसने बताया कि वह तुम्हारे पिताजी का दोस्त है और तुम्हारे पिताजी और वो हमेशा साथ रहते हैं तो वह पैसे देकर गया है और वह बोल रहा था कि अगर कोई पूछे तो उसका नाम महेश बता देना और जब वह ठीक हो जाएगा तो मैं अपने दोस्त से पैसे खुद ही ले लूंगा तो उनके घर वालों ने सोचा, कि चलो कोई होगा जो पैसे देकर गया होगा शायद हमें ना पता हो कोई पिताजी का दोस्त महेश हो तो जब उसका पिताजी ठीक होकर घर आता है उसका पुत्र उसको पूछता हैं कि तुम्हारे मित्र ने तुम्हारे ऑपरेशन के पैसे दिए और वो तुम्हे दोबारा मिलने नहीं आया तो उसने पूछा कि कौन से दोस्त ने पैसे दिए उन्होंने कहा कि उन्होंने अपना नाम महेश बताया है और उन्होंने डॉक्टर को पैसे दिए थे और डॉक्टर को बोला था कि बाद में मैं मिलने आऊंगा तो पैसे ले लूंगा तो दोस्तों वह बताता है कि मेरा तो कोई भी दोस्त महेश नहीं है महेश नाम का मेरा कोई दोस्त नहीं है ना मै महेश नाम के किसी आदमी को जनता हूँ तो दोस्तों ऐसा सुनते ही उसकी पत्नी समझ जाती है कि जरूर खुद भगवान् ने आकर हमारी मदद की है और उन्होंने ऑपरेशन के पैसे दिए हैं और जब बहुत जानने की कोशिश करने के बाद भी उन्हें कोई महेश नाम का आदमी नहीं मिलता और ना कोई पैसे वापस लेना आता है तो सभी परिवार वाले भगवान के सामने हाथ जोड़कर उनका शुक्रिया अदा करते हैं और बहुत खुश होते हैं कि कितनी मुश्किल की घड़ी में भगवान ने खुद आकर हमारी मदद की है तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर हम सच्चे मन से भगवान को याद करते हैं तो इस घोर कलयुग में भी भगवान हमारी मदद करने जरूर आते है ,या किसी और इंसान के द्वारा हमारी मदद करते है लेकिन दोस्तों मदद जरूर करते है बस विश्वास होना चाहिए
by Ashok Kumar | May 4, 2025 | Story

बहुत पहले विजय आदित्य नाम का एक राजा राज्य करता था। वह शिव का परम भक्त था। उसने संगमरमर पत्थर में शिव का एक सुन्दर मन्दिर बनवाया था और हमेशा उन्हें प्रसन्न करने के नये तरीके सोचता रहता था।
एक दिन राजा ने सोचा, ‘श्रावण का मंगलमय महीना आरम्भ हो गया है। श्रावण में सोमवार के दिन भगवान की पूजा करने से बहुत लाभ होता है, क्योंकि यह दिन-विशेष शिव को बहुत है। इसलिए इस अवसर पर विशेष पूजा होनी चाहिये। यह कैसे किया जाये?’
बहुत सोचने के बाद उसके मन में एक विचार आया। क्यों नहीं इस महीने में हरेक सोमवार को 1008 पात्रों के दूध से उनका अभिषेक किया जाये। इस पूजा के लिए सभी लोग दूध दान करेंगे जिससे उन्हें भी पुण्य मिलेगा। पूजा के लिए दूध विशेष रूप से बनाये गये एक कुण्डमें एकत्र किया जायेगा।
कुछ दिनों के बाद राजा के उद्घोषक ने शहर के चौक पर ढोल बजा कर यह घोषणा की, “नगरवासियो! कल श्रावण का पहला सोमवार है और हमारे राजा एक हजार आठ पात्रों के दूध से शिव की पूजा करेंगे। हरेक गृहवासी को कल । सुबह घर का सारा दूध लेकर मन्दिर में अवश्य जाना चाहिये और मन्दिर के कुण्ड में सारा दूध डाल देना चाहिये। याद रखो, तुम सब को सारा दूध डालना चाहिये जिससे कुण्ड मुख तक पूरा भर जाये।”
सभी नगरवासी शहर के चौक पर घोषणा सुनने के लिये आये। कुछ लोग अपने राजा की धर्मनिष्ठा पर खुश थे; अन्य, शायद, पूजा के लिए अपना सारा दूध दे देने के कारण उतने खुश नहीं थे। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा और सभी लौट गये।
दूसरे दिन सवेरे से लोग दूध के पात्रों के साथ मन्दिर में जाने लगे। शीघ्र ही, मन्दिर के सामने एक लम्बी कतार बन गई, क्योंकि कुण्ड में अपने हिस्से का दूध द्यलने के लिए अधिक से अधिक लोग आने लगे। वे सब अपने घर का सारा दूध ले आये थे, बछड़ों के लिए एक बून्द भी नहीं छोड़ा था।
शिशु, बच्चे, बूढे तथा बीमार, उस दिन किसी को भी अपने हिस्से का दूध नहीं मिला | क्योंकि सारा दूध मन्दिर के कुण्ड में डाल दिया गया था।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, कुण्ड में दूध का स्तर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा। फिर भी, दोपहर तक कुण्ड आधा ही भरा | हेरक क्षण इतने पात्रों के दूध कुण्ड में डालने पर भी कुण्ड खाली था, यह सचमुच आश्चर्य की बात थी।
क्रमशः पुजारी तथा मन्दिर में एकत्र सभी लोग चिन्तित हो गये । यहाँ क्या हो रहा है?
भीढ़ में सब घबराहट के साथ कानाफूसी करने लगे। एक व्यक्ति बुदबुदाने लगा, “क्या बात है? कुण्ड क्यों नहीं भर रहा है, हालांकि हर नगरवासी अपना दूध इसमें डाल चुका है। क्या शिव भगवान नाराज हैं? क्या हम लोगों से अनजाने में कोई पाप हो गया है?” पुजारी बहुत घबराये हुये थे।
तभी मन्दिर के अहाते में एक बूढ़ी औरत ने प्रवेश किया, जिसे शायद ही किसी ने ध्यान से देखा होगा। वह नगर के दूसरे छोर पर रहती थी। उसने सवेरे उठ कर अपनी सभी गायों का दूध निकाल लिया था, लेकिन बछड़ों के लिए कुछ छोड़ दिया था। फिर उन्होंने परिवार के सदस्यों को दूध पिलाया और घर का कामकाज पूरा किया। इसके बाद केवल एक छोटे कटोरे भर दूध बचा। वह उसे लेकर मन्दिर में गई और यह प्रार्थना करते हुए दूध को कुण्ड में डाल दिया, “हे कृपासिन्धु प्रभु! सिर्फ इतना ही आप को अर्पित कर सकती हूँ लेकिन यह अपनी पूरी भक्ति के साथ समर्पित कर रही हूँ। कृपया मेरी छोटी सी भेंट को स्वीकार करें।
और लो, देखो। अब आधा रिक्त कुण्ड दूध से लबालब भर गया। बूढ़ी औरत जैसे विनीत भाव से आई थी वैसे ही चली गई। राजा और पुजारी कुण्ड को भरा हुआ पाकर फूला न समाये और विशेष पूजा का कार्य सम्पन्न किया गया।
अगले सोमवार को वैसा ही हुआ। नगर के सब वासियों ने ईमानदारी से कुण्ड में अपने दूध डाल दिये, फिर भी वह आधा खाली ही रहा औ तभी लबालब भरा जब बूढ़ी औरत ने अपने छोटे से कटोरे का दूध उसमें डाला। इस चमत्कार को देख कर सभी चकित थे।
राजा ने इस रहस्य की तह तक जाने का निश्चय किया। इसलिए तीसरे सोमवार को राजा सवेरे से ही कुण्ड के निकट पहरेदार के वेश में खड़ा हो गया और हर घटना पर निगरानी रखने लगा।
पहले की तरह लोग अपने दूध अर्पित करने के लिए कुण्ड के निकट पंक्ति में खड़े होने लगे। लेकिन दूध का स्तर आधा कुण्ड से ऊपर नहीं उठा।
तब बूढ़ी औरत कटोरा भर दूध लेकर आई और ऊँचे स्वर में प्रार्थना करने लगी, “हे प्रभु मैं जितना दूध बचा सकी हूँ, वह आप को अर्पित है। मुझे विश्वास है कि आप अपनी असीम कृपा में इसे स्वीकार करेंगे । कृपा करके आशीर्वाद दें जिससे मुझे अपनी धारणा पर दृढ़ बने रहने में शक्ति प्राप्त हो!” तब उसने कुण्ड में अपना दूध डाल दिया। जैसे ही वह वापस जाने के लिए मुड़ी कि राजा, जो वेश बदल कर निगरानी कर रहा था, यह देख कर चकित रह गया कि कुण्ड दूध से लबालब भर गया।
उसने दौड़ कर बूढ़ी औरत को रुकने के लिए कहा। डर से काँपती हुई वह बोली, “मुझे क्यों रोकते हो? मैंने क्या किया है?”
राजा ने कहा, “डरो मत, माँ। मैं राजा हूँ और तुमसे कुछ जानना चाहता हूँ। कितने ही लोगों ने अपना दूध कब से कुण्ड में डाल रहे हैं, फिर भी आधा कुण्ड से ज्यादा नहीं भरा । लेकिन तुमने जैसे ही इसमें छोटे कटोरे भर का दूध डाला, कुण्ड अचानक लबालब भर गया। क्या बता सकती हो ऐसा क्यों हुआ?”
बूढ़ी औरत ने उत्तर दिया, “महाराज, मैं एक माँ हूँ और माँ कभी अपने बच्चों को भूखे देखना सह नहीं सकती। इसलिए मैंने आप की आज्ञा का पालन नहीं किया। गायों से दूध निकालते समय मैंने कुछ दूध बछडों के लिए छोड़ दिया और फिर सब बच्चों को पिलाया। इसके बाद जो दूध बचा, वही पूजा के लिए लाई हूँ। भगवान भी माता के समान हैं। वे नहीं चाहते कि बच्चों को भूखों मारें। स्पष्ट बोलने के लिए क्षमा चाहती हूँ।
हे राजा, आपने किन्तु यही कर दिया! आपने लोगों को पूजा के लिए घर का सारा दूध लाने के लिए आदेश दिया और बछड़ों, बच्चों, बूढों तथा बीमारों के लिए कुछ भी बचाने के लिए नहीं कहा। प्रजा दुखी थी लेकिन आप की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकी। उन्होंने अर्पण तो किया किन्तु स्वेच्छा से नहीं। भगवान को यह पसन्द नहीं आया। और आप के अर्पण को अस्वीकार करके उन्होंने अपना असन्तोष प्रकट किया!”
राजा यह सुन कर विचारों में खो गया। वह ठीक कहती है’, उसने मन में कहा। ‘राजा को भी अपनी प्रजा के लिए माता के समान होना चाहिये, जो उसके स्वास्थ्य और सुख का ध्यान रखे। लेकिन मैं अपनी पूजा के लिए उन्हें दूध देने पर मजबूर करके महापाप कर रहा था। फिर भगवान हम पर कैसे प्रसन्न रहते?’ शर्म से उसका सिर झुक गया।
वह बूढ़ी औरत से बोला, “मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ, माँ। तुमने हमारी आँखें खोल कर सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाया है।”
तुरन्त उसने घोषणा करवाई कि आनेवाले सोमवार के दिन लोगों को उतना ही दूध लाना है जो बछडों, बच्चों, बूढों तथा बीमारों को पिलाने के बाद बच जाये।
अगले सोमवार को भी, जो श्रावण का अन्तिम सोमवार था, मन्दिर पर सबेरे से ही लम्बी कतार थी। लोग उतना ही दूध लाये थे, जो बचा सके थे। राजा ने भी उतना ही दूध डाला जो महल के बछड़ों, बच्चों, तथा अन्य लोगों से बच पाया था। परिणाम आश्चर्यजनक था। कुण्ड सुबह में ही भर गया था।
राजा अब प्रसन्न था और बूढ़ी औरत का इन्तजार कर रहा था। जब उसने अपने हिस्से का दूध डाल दिया, तब राजा उसे मन्दिर में ले गया और दोनों ने एक साथ पूजा की।
“धन्यवाद माता, भगवान सचमुच आखिर प्रसन्न हो गये।” राजा ने कहा।
by Ashok Kumar | May 4, 2025 | Story

पुराने समय की बात है। राजस्थान के देवपुरा गांव के बाहर बाबा मणि दिव्य की कुटिया थी। बाबा अपने सरल स्वभाव के कारण अत्यंत लोकप्रिय थे। उस गांव में दूसरे गांव से एक भीलनी रोज दूध बेचने के लिए आती थी। सबसे पहले वह बाबा मणि दिव्य को दूध पहुंचाती, फिर गांव के अन्य लोगों के पास जाती। एक दिन वह देर से आई तो बाबा ने कारण जानना चाहा। भीलनी बोली, ‘आज नदी पार करने के लिए नाव देर से मिली। इसीलिए देर से आई।’ बाबा मणि दिव्य बोले, ‘बेटी! लोग तो भगवान के नाम से भवसागर को पार कर जाते हैं, तू एक नदी नहीं पार कर सकती?’
भीलनी पर बाबा मणि दिव्य की बात का गहरा प्रभाव पड़ा। अगले दिन वह सुबह-सुबह बाबा के द्वार पर पहुंच गई। बाबा ने पूछा, ‘आज इतनी जल्दी कैसे आ गई?’ भीलनी बोली, ‘आपने ही तो भगवत नाम का सहारा सुझाया था। आज उन्हीं का नाम लेकर नदी पार कर गई। अब नाव का सहारा लेने की जरूरत जीवन भर नहीं पड़ेगी।’ बाबा मणि दिव्य ने भगवत नाम का उपदेश दिया तो था, परंतु उन्हें स्वयं उसके इतने बड़े प्रभाव का भान न था। उन्हें लगा कि भीलनी उनसे यह बात हास्य में कह रही है।
बाबा प्रमाण लेने भीलनी को लेकर नदी किनारे पहुंचे। वहां यह देखकर उनकी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं कि भीलनी भगवान का नाम लेते हुए सहजता से नदी पार करने लगी। बाबा मणि दिव्य ने भीलनी को प्रणाम करते हुए कहा, ‘हे देवी! आज से तू ही मेरी गुरु है। मैंने तो जीवन भर भगवान का नाम लेने का उपदेश भर दिया, पर तूने तो भगवान को अपना करके दिखा दिया।’ निष्पाप हृदय वाले सच्चे मन से भगवान को पुकारते हैं तो वे भी उनके सहारे के लिए उपस्थित हो जाते हैं।